Berukhi
ना समझ पाई ये नासमझी दुनिया...
ज़िन्दगी खुली किताब की तरह पेश कर्दी फिर भी लड़ती रही ये दुनिया...
माना की सच जुठ को परखने में बोहोत ही होशियार है ये दुनिया...
पर मेरे सच सुनने को भी तैयार नहीं है ये दुनिया...
क्या फायदा उस लड़ाई को लड़ने में जिसमें हार निश्चित है...
क्यूंकि हर बार इस बेरुखी को जयिज़ बनती है ये दुनिया...!!
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